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Showing posts from 2019

आखिरी चट्टान - मोहन राकेश

                    आखिरी चट्टान | ( मोहन राकेश )   परिचय - मोहन राकेश ( असली नाम मदनमोहन मुगलानी ) का जन्म अमृतसर में सन् 1925 में हुआ । उन्होंने पहले आरिएंटल कालेज , लाहौर से संस्कृत में एम . ए . किया और विभाजन के बाद जालन्धर आये । फिर पंजाब विश्वविद्यालय से एम . ए . किया । जीविकोपार्जन के लिए कुछ वर्षों अध्यापन कार्य किया , किन्तु लाहौर , मुम्बई , जालन्धर और दिल्ली में रहते हुए कहीं भी स्थायी रूप से नहीं रहे । इन्होंने कुछ समय तक ‘ सारिका ' पत्रिका का सम्पादन किया । ये ' नयी कहानी ' आन्दोलन के अग्रणी कथाकार माने जाते हैं । मोहन राकेश बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । उन्होंने उपन्यास , नाटक , कहानी , निबन्ध एवं यात्रा - वृत्तान्त आदि सभी विधाओं पर लेखनी चलायी । इनका सन् 1972 में असमय निधन हुआ ।  आषाढ़ का सारा दिन ' , ' लहरों के राजहंस ' तथा ' आधे - अधूरे ' इनके चर्चित नाटक हैं , जो रंगमंच की दृष्टि से पूर्ण सफल हैं । ' अंधेरे बन्द कमरे ' , ' अन्तराल ' , ‘ न आने वाला कल ' उनके उपन्यास तथा ' इंसान के खण्डहर ' , ' नये बादल '

आखिरी चट्टान - मोहन राकेश

                    आखिरी चट्टान | ( मोहन राकेश )   परिचय - मोहन राकेश ( असली नाम मदनमोहन मुगलानी ) का जन्म अमृतसर में सन् 1925 में हुआ । उन्होंने पहले आरिएंटल कालेज , लाहौर से संस्कृत में एम . ए . किया और विभाजन के बाद जालन्धर आये । फिर पंजाब विश्वविद्यालय से एम . ए . किया । जीविकोपार्जन के लिए कुछ वर्षों अध्यापन कार्य किया , किन्तु लाहौर , मुम्बई , जालन्धर और दिल्ली में रहते हुए कहीं भी स्थायी रूप से नहीं रहे । इन्होंने कुछ समय तक ‘ सारिका ' पत्रिका का सम्पादन किया । ये ' नयी कहानी ' आन्दोलन के अग्रणी कथाकार माने जाते हैं । मोहन राकेश बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । उन्होंने उपन्यास , नाटक , कहानी , निबन्ध एवं यात्रा - वृत्तान्त आदि सभी विधाओं पर लेखनी चलायी । इनका सन् 1972 में असमय निधन हुआ ।  आषाढ़ का सारा दिन ' , ' लहरों के राजहंस ' तथा ' आधे - अधूरे ' इनके चर्चित नाटक हैं , जो रंगमंच की दृष्टि से पूर्ण सफल हैं । ' अंधेरे बन्द कमरे ' , ' अन्तराल ' , ‘ न आने वाला कल ' उनके उपन्यास तथा ' इंसान के खण्डहर ' , ' नये बादल '

अमर शहीद लक्ष्मीनारायण रंगा

                   अमर शहीद | ( लक्ष्मीनारायण रंगा )   परिचय - श्री लक्ष्मीनारायण रंगा का जन्म सन् 1934 में बीकानेर में कालेज , बीकानेर से स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त कर ये राजस्थान भाषा वापर में मुख्य अनुवादक के रूप में कार्यरत रहे । प्रारम्भ से ही इनका कों की ओर रहा । अत : नाटक - लेखन , निर्देशन एवं अभिनय में सक्रिय - भाग लेते रहे । ये हिन्दी एवं राजस्थानी दोनों भाषाओं में समान अधिकार के | साहित्य - सृजन करते रहे हैं । इन्होंने मुख्यतः ऐतिहासिक , सामाजिक एवं मसामयिक विषयों पर नाटक तथा एकांकी लिखे हैं , जो कि रंगमंच की दृष्टि से पूर्ण सफल रहे हैं । * लक्ष्मीनारायण रंगा के नाटक एवं एकांकी - संग्रह हैं - टूटती नालन्दाएँ ' , ' रक्तबीज ' , ' तोड़ दो जंजीरें ' , ' एक घर अपना ' । इनके कहानी संग्रह हैं ' दहेज का दान ' , ' हम नहीं बचेंगे ' तथा ' हम नहीं छोड़ेंगे ' । इन्होंने कविताएँ एवं बाल कहानियाँ भी लिखी हैं । एकांकी - परिचय - ' अमर शहीद ' एकांकी राजस्थान के स्वतन्त्रता सेनानी सागरमल गोपा के शौर्य , साहस एवं बलिदान पर आधारित है । इ

स्त्री - शिक्षा का विरोध

 स्त्री - शिक्षा के विरोधी कुतर्को का खण्डन ( महावीर प्रसाद द्विवेदी )  परिचय - आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का अभ् । सन् 1864 में ग्राम दौलतपुर जिला रायबरेली ( उ . प्र . ) में हुआ था । परिवार की आर्थिक थिति अ % न होने के कारण स्कूली शिक्षा पूरी कर उन्होंने रेलवे में नौकरी कर ली थी । बाद में उन्होंने उस नौकरी से इस्तीफा देकर सन 1903 में प्रसिद्ध हिंदी मासिक पत्रिका सरस्वती का सम्पादन शुरू किया और सन 1920 तक इस सम्पादक कार्य से , रहे । सन् 1938 में उनका देहान्त हो गया । द्विवेदीजी हिन्दी के पहले व्यवस्थित सम्पादक , भाषा वैज्ञानिक , इतिहासकार , पुरातत्त्ववेत्ता , अर्थशास्त्री , समाजशास्त्री , वैज्ञानिक चिन्तन एवं लेखन के श्रापक , समालोचक और अनुवादक थे । उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं ‘ रसन्न रंजन ' , ' माथि सीकर ' , ' साहित्य - सन्दर्भ अद्भुत आलाप ' ( निबन्ध - संग्रह ) ; इसके साथ ही द्विवेदी काव्यमाला में उनकी कविताएँ हैं । उनका सम्पूर्ण साहित्य ' महावीर द्विवेदी रचनावली ' के पन्द्रह खण्डों में प्रकाशित है । पाठ - परिचय - लेखक ने इस निबन्ध में स्त्री - शिक्षा का विर

ईदगाह ( मुंशी प्रेमचन्द )

                         ईदगाह ( मुंशी प्रेमचन्द )    परिचय - प्रसिद्ध कथाकार मुंशी प्रेमचन्द का जन्म वाराणसी जिले के लमही गाँव में सन् 1880 ई . में हुआ था । इनके बचपन का मूल नाम धनपतराय । था । इनकी प्रारम्भिक शिक्षा बनारस में हुई , मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण कर ये अध्यापन कार्य करने लगे । स्वाध्याय से बी . ए . तक शिक्षा प्राप्त की । प्रारम्भ में ये नवाबराय के नाम से उर्दू में लेखन - कार्य करते थे , परन्तु अंग्रेज सरकार ने इनकी ' सोजे वतन ' | रचना जब्त कर दी । उसके बाद ये हिन्दी में प्रेमचन्द नाम से लिखने लगे । प्रेमचन्द ने कहानी , उपन्यास , नाटक आदि सभी गद्य - विधाओं में लेखन किया । इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं ' मानसरोवर ' आठ भाग , ‘ गुप्त धन ' दो भाग ( कहानी - संग्रह ) , ' निर्मला ' , ' सेवासदन ' , ' प्रेमाश्रम ' , ' रंगभूमि ' , ' कर्मभूमि ' , ' गबन ' , ‘ गोदान ' – उपन्यास तथा ' कर्बला ' , ' संग्राम ' आदि नाटक और तीन खण्डों में प्रकाशित निबन्ध । इन्होंने ' माधुरी ' , ' हंस ' , ' जागर

एक अद्भुत अपूर्व स्वप्न

                          एक अद्भुत अपूर्व स्वप्न  ( भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ) लेखक - परिचय - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म काशी में सन् 1850 ई . में हुआ और ये केवल चौंतीस वर्ष चार महीने जीवित रहकर सन् 1885 में दिवंगत हो गये । इतने कम जीवन - काल में इन्होंने अद्वितीय साहित्यिक कार्य किया । ये जन्म से ही कुशाग्र बुद्धि और प्रतिभाशाली थे । सोलह वर्ष की आयु होते ही इन्होंने काव्य - रचना प्रारम्भ कर दी तथा सत्रह वर्ष की आयु में ' कविवचन सुधा ' नामक पत्रिका निकाली । इन्होंने साहित्य - रचना के साथ उस समय के अन्य लेखकों एवं कवियों का मार्गदर्शन किया , साथ ही धार्मिक और सामाजिक क्षेत्र में सुधार - कार्य भी किये । स्त्री - शिक्षा के लिए उन्होंने ‘ बाल - बोधिनी ' पत्रिका का प्रकाशन किया । भारतेन्दु ने कुल 175 ग्रन्थ लिखे । इन्होंने नाटक , निबन्ध , अनुवाद - कार्य आदि विधाओं का प्रवर्तन किया । इन्हें आधुनिक युग में हिन्दी | गद्य - साहित्य का जनक माना जाता है । । पाठ - परिचय - ' एक अद्भुत अपूर्व स्वप्न ' निबन्ध में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने अपनी विनोद - प्रिय प्रकृति का परिचय देते

यात्रा और भ्रमण (गोविंद लाल)

              कुछ ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण ( यात्रा )  सन् 1996 में जन्मे बहुमुखी प्रतिभा के धनी सेठ गोविन्ददास हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में एक यशस्वी साहित्यकार के रूप में विख्यात हैं । आपने उपन्यास , नाटके , एकाकी , आत्मकथा , काव्य जीवनी , यात्रा संस्मरण , निबंध आदि साहित्य को विविध विधाओं पर लेखनी चलाकर हिन्दी साहित्य के भंडार की पूर्ति ॐ है । आप एक यशस्वी साहित्यकार होने के साथ - साथ स्वतन्त्रता संग्राम के यशस्वी सेनानी भी रहे हैं और इस संग्राम में सक्रिय भाग लेने के कारण आपको अनेक बार जेल - यात्रा भी करनी पड़ी है । जेल में आपको अध्ययन - मनन , चिन्तन एवं लेखन के लिए पर्याप्त अवसर प्राप्त हुआ । इतना ही नहीं भारतीय संस्कृति के अनन्य पुजारी होने के कारण जहाँ एक ओर आपके विचारों में भारतीय संस्कृति की अमिट छाप दिखायी देती है वहीं गाँधीवाद में अटूट श्रद्धा एवं विश्वास होने के कारण आपकी चिन्तन धारा गाँधीजी के विचारों से प्रभावित रही है । | आपको शिक्षा व साहित्य में सन् 1961 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया । आप भारतीय संस्कृति के अनन्य उपासक , कला मर्मज्ञ , आदर्श राजनीतिज्ञ व प्रसिद्ध न

मानस का हंस - अमृतलाल नागर

 प्रेमचन्द के पश्चात् सामाजिक सरोकारों से सम्बद्ध रचनाएँ के उपन्यासकार अमृतपाल नागर का स्थान सर्वोपरि एवं अन्यतम है । ये स्वाधीन के ऐसे उपन्यासकार हैं जिनकी रचनाओं में हमें स्वाधीनता के पूर्व का समाज आज के समाज के प्रामाणिक चित्र प्रभूत मात्रा में प्राप्त होते हैं । समाज से गहरी - रजने वाले अमृतलाल नागर का जन्म 11 अगस्त , 1916 ई . को आगरा के पुरा मोहल्ले में हुआ था ।  उनके पिता राजाराम बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । 5 पितामह इन्हें जज बनाना चाहते थे और पिता उन्हें डॉक्टर या इंजीनियर न चाहते थे किन्तु नागरजी का मन इन सबमें नहीं लगा । वे इन्टर मीडिएट में | राण रहे । उनका विवाह अल्पायु में ही 31 जनवरी , 1931 को प्रतिभा नागर | हुआ । वे एक प्रतिभा सम्पन्न महिला थीं और नागरजी के तीन - चौथाई के प्रतिभा थी । परिणामतः उनके उपन्यासों में नारी जीवन की पीड़ा प्रतिभा भाव से अंत तक जीवित रही । ये 23 जनवरी , 1990 को साहित्य की पूरी करके सदा के लिए इस भौतिक संसार से विदा हो गये । इनका हुआयामी रहा । इन्होंने भाषा लेखन 1930 से प्रारम्भ किया । उनकी सन् 1933 में प्रकाशित हुई । उन्होंने कई पत्रिकाओं का सम्पाद

गौरा ( रेखाचित्र ) महादेवी वर्मा

                             गोरा एक मार्मिक कहानी समाज में नो प्रयत्न कार्यों में त करना सीखकर । गौरा ( रेखाचित्र ) ( महादेवी वर्मा ) लेखक - परिचय - साहित्य - रचना एवं समाज - सेवा के क्षेत्र में महादेवी वर्मा का आदरणीय स्थान रहा है । हिन्दी साहित्य में रेखाचित्र एवं संस्मरण विद्या की श्रीवृद्धि करने में इनका अनुपम योगदान रहा है । अपने सम्पर्क में आने वाले शोषित व्यक्तियों , साहित्यकारों , जीव - जन्तुओं आदि का संवेदनात्मक चित्रण कर महादेवी जी ने अतीव मार्मिकता प्रदान की है । ये छायावादी युग की नारी - संवेदना से मण्डित कवयित्री रही हैं ।  इनकी कविताओं में आंतरिक वेदना और पीड़ा की | मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है जिससे वे इस लोक से परे किसी अव्यक्त सत्ता की ओर अभिमुख दिखाई देती हैं । इनकी प्रतिभा कविता और गद्य इन दोनों में अलग अलग स्वभाव लेकर सक्रिय रही है । गद्य के क्षेत्र में इनका दृष्टिकोण सामाजिक सरोकार के प्रति संवेदनामय रहा है । न करते नहीं कर बन्धित ई बातों हो गई । गौर _ महादेवी वर्मा का जन्म सन् 1907 में फरुखाबाद ( उत्तरप्रदेश ) में तथा निर्द सन् 1987 ई . में इलाहाबाद में हुआ । इनकी

सत्य के प्रयोग और महात्मा गांधी

जन्म 2 अक्टूबर , 1869 में भारतीय स्वतन्त्रत | गा । | 232 2 . सत्य के प्रयोग ( आत्मकथा अंश ) ( मोहनदास करमचन्द गाँधी ) लेखक - परिचय - मोहनदास करमचन्द गाँधी का जन्म 2 अक्टव । | गुजरात ( काठियावाड़ ) के पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ था । ये भारती के प्रमुख नेता थे । उन्होंने सत्याग्रह के माध्यम से ब्रिटानिया हुकूमत के प्रतिकार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । उनके सत्याग्रह की नींव अहिंसा यि आधारित थी । उहोंने अपनी इसी नीति के आधार पर भारत को अंग्रेजों से 14 । दिलाई और वे भारत के राष्ट्रपिता कहलाये । आज सारा संसार उन्हें महात्मा गाँधी के नाम से जानता है । नेताजी का चन्द्र बोस ने 6 जुलाई , 1944 को रंगून रेडियो से गांधी के नाम जारी प्रसारण में । उन्हें राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित करते हुए उनके प्रति श्रद्धा ही व्यक्त नहीं की थी बल्कि आजाद हिन्द फौज के लिए उनका आशीर्वाद और शुभ कामनाएँ भी माँगी । थीं । उनकी महानता को स्वीकार करते हुए देश उनका जन्म दिवस ' गाँधी जयन्ती ' और विश्व में ' अन्तराष्ट्रीय अहिंसा दिवस ' के रूप में मनाया जाता है । इनका निधन 30 जनवरी , 1948 को हुआ था । पाठ - स

उसने कहा था:- पंडित चंद्रधर शर्मा

                      उसने कहा था पंडित चंद्रधर शर्मा उसने कहा था पंडित चंद्रधर शर्मागुलेरी हिंदी साहित्य के क्षेत्र में कुशल संपादक प्रबुद्ध निबंध का और असाधारण कहानी के रूप में प्रसिद्ध है परंतु आप की सर्वाधिक जाति का श्रेय कहानी को ही प्राप्त होता है आप एक प्रमुख विद्वान एवं अलौकिक प्रतिभा संपन्न व्यक्ति से 20 तक शिक्षा प्राप्त करके आपने संस्कृति पाली प्राकृत अपभ्रंश आदि प्राचीन भाषाओं तथा भारतीय का गहन अध्ययन किया था आपका जन्म जयपुर में हुआ था इनकी प्रतिभा का क्षेत्र खगोल विज्ञान भाषा विज्ञान इतिहास एवं साहित्य तक विस्तृत था गुलेरी जी ने केवल 3 कहानियां लिखकर हिंदी कथा साहित्य में एक अमर कहानी का के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की उन्होंने सर्वप्रथम सुखमय जीवन कहानी लिखी जो न तो कथानक विकास की दृष्टि से सुंदर है और रचना शैली की दृष्टि से आकर्षक परंतु वह एक आरंभिक अपरिपक्व रचना है इसके बाद उन्होंने बुद्धू का कांटा नामक कहानी लिखी जो पहली कहानी की अपेक्षा कहीं अधिक प्रौढ़ एवं परिपक्व है क्योंकि इसमें इतिवृत्त का गठन तनिक कुशलता पूर्वक किया गया है और रचना पद्धति में भी निखार आया है इसके

तुलसीदास और उनका जीवन

                   तुलसीदास और उनका जीवन  महाकवि तुलसीदास का जन्म सन 1497 में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के राजापुर नामक गांव में हुआ आपके पिता का नाम आत्माराम तथा माता का नाम हुलसी देवी का बचपन से ही माता-पिता का देहांत हो जाने के कारण इनका पालन और शिक्षा दीक्षा गुरु नरसिंह दास के द्वारा संपन्न हुई तुलसीदास भक्ति धारा के राम भक्त कवि है आपकी कीर्ति का प्रमुख महाकाव्य रामचरितमानस से इस ग्रंथ में हिंदू धर्म तथा संस्कृति के भव्य दर्शन होते हैं कवि ने इस ग्रंथ द्वारा सगुण निर्गुण ज्ञान भक्ति और वैष्णव भक्ति आदि के बीच समन्वय करके सभी का मार्गदर्शन किया है प्रमुख रचनाएं तुलसीदास के ग्रंथों की संख्या इस प्रकार है रामचरितमानस विनय पत्रिका गीतावली कवितावली दोहावली बरवै रामायण श्री कृष्ण गीतावली जानकी मंगल पार्वती मंगल वैराग्य संदीपनी रामलला और रामाज्ञा प्रश्नावली तुलसी भाषा शैली अलंकार आदि सभी कार्यक्रमों के शिल्पकार है महाकवि तुलसीदास जी ने अपने जीवन के अंदर कुछ भगवान श्री राम के ऊपर जो भी लिखा या मैं आज जो आपको इस स्टोरी के अंदर बताने जा रहा हूं वह सभी लाइने अयोध्या कांड से संकलित है इसमें

दहेज एक सामाजिक कलंक

                          दहेज एक सामाजिक कलंक  दहेज एक सामाजिक कलंकअथवा नारी का अपमान भारतीय संस्कृति में जिसने भी कन्यादान की परंपरा चलाई उसने नारी जाति के साथ बड़ा अन्याय किया भूमि वस्तु भोजन गाय आदि के दान के समाज कन्या का विधान कैसी विडंबना है मानो अन्य कोई जीवंत प्राणी मनुष्य ने होकर कोई निर्जीव वस्तु को दान के साथ दक्षिणा भी अनिवार्य मानी गई है बिना दक्षिणा के दान निष्फल होता है तभी तो कन्यादान के साथ दहेज रूपी दक्षिणा की व्यवस्था की गई है दहेज की परंपरा हजारों वर्ष पुरानी परंपरा है लेकिन प्राचीन समय में महेश का आज दशा निकृष्ट रूप नहीं था दो-चार वस्त्र बर्तन को एक राय देने से सामान्य गृहस्थ का काम चल जाता था नव दंपति के गृहस्थ जीवन में कन्या पक्ष का मंगल कामना का द्योतक था आज तो दहेज कन्या का पति बनने की फीस बन गया है विवाह के बाजार में वर्ग की नीलामी होती है काली कमाई के अपने समाज के संपन्न लोग आमजन को चिढ़ाते हो जाते हैं या पक्ष की हीनता इस स्थिति का कारण क्षतिग्रस्त पता भी है प्राचीन काल में कन्या को वर चुनने की स्वतंत्रता से माता-पिता ने उसको किसी के हाथों में ले लिया है आज

राष्ट्रीय एकता और अखंडता

                        राष्ट्रीय एकता और अखंडता  राष्ट्रीय एकता और अखंडता  प्रस्तावना :-         भारतीय संस्कृति अनेकता में एकता की साधना है पारस जीवित क्यारियों में सजा विशाल उद्यान है नाना प्रकार के रत्नों से उठा मानवता के कंठ का हार है किंतु जब उपवन की तैयारियां जोरों पर उतारू हो जाए माला के फूल फूल बनकर चुभने लगे तो इस भारती कल्पना का क्या अंत होगा रस्म हार के टूटने पर वह हीरा हो या पन्ना नीलम हो या पुखराज सब धरती पर बिखर जाते हैं प्रकृति की सुरभि इतिहास का गौरव और संगठन की शक्ति का लाभ तभी तक मिलेगा जब तक राष्ट्रीय एकता सुरक्षित रहेगी देश की अखंडता यदि संकट में पड़ी तो गुलामी के द्वार फिर से खुल पाया जाएंगे                 राष्ट्रीय एकता और अखंडता का अर्थ :-    राष्ट्र के तीन अनिवार्य अंग है भूमि विकास और संस्कृति एक राष्ट्र के दीर्घ जीवन और शिक्षा के लिए उन तीनों का सही संबंध बना देना परम आवश्यक है यदि किसी राष्ट्र की भूमि से वहां के राष्ट्रवादी उदासीन हो जाएंगे तो राष्ट्र के विखंडन का भय बना रहेगा 1962 में चीन का आक्रमण और भारत की हजारों किलोमीटर भूमि पर अधिकार इसका ज्वलंत उदाह

मित्रता : - आचार्य रामचंद्र शुक्ल

                          मित्रता आचार्य रामचंद्र शुक्ल मित्रता आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के गुना नामक गांव में सन 18 84 में हुआ था उनके पिता पंडित चंद्रबली शुक्ल राठ तहसील में कानूनों को थे शुक्ला जी की शिक्षा राज मिर्जापुर और इलाहाबाद में हूं बाद में आप मिर्जापुर के मिशन स्कूल में चित्रकला के अध्यापक बने आपने स्वाध्याय द्वारा हिंदी अंग्रेजी संस्कृत बांग्ला भाषाएं सीखी आफ काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक तथा विभाग अध्यक्ष बने संघ का देहांत हो गया उसने जी ने एक समालोचक निबंधकार का संपादक के रूप में साहित्य सेवा कि आप हिंदी में वैज्ञानिक समीक्षा के जनक माने जाते हैं हिंदी साहित्य के इतिहास पर आप ने अनूठी और प्रथम मौलिक रचना प्रस्तुत की है चिंतामणि में संकलित मनोविकार होता भावों का आधारित आपके निबंध हिंदी साहित्य में काव्य रचना भी की है आपकी भाषा पर गंभीर और विचारात्मक विवेचनात्मक सहेलियों का प्रयोग किया है बीच-बीच में आता हिंदी साहित्य का इतिहास की भूमिका भ्रमरगीत सार तुलसी साहित्य की प्रसिद्ध रचनाएं है आचार्य राम शुक्ल द्वारा मनोविकार ओं त

कबीर दास ज्ञान प्रवाह तथा परिचय

 माना जाता है कि कबीर का जन्म सन 1398 में वाराणसी के पास लहरतारा में एक जुलाहा परिवार में हुआ उनके पिता का नाम नीरू तथा माता का नाम नीमा संस्कृति के अनुसार कबीर एक विधवा ब्राह्मणी के पुत्र थे जिसने उनको लॉक लग जा के कारण त्याग दिया नीरू और नीमा यह मिले और उन्होंने इनका पालन किया कबीर के गुरु उस समय के प्रसिद्ध संत स्वामी रामानंद थे अधिकतर विद्वान मानते हैं कि संघ 1518 में कबीर ने मगहर में जाकर प्राण त्यागे थे कबीर इस मान्यता का खंडन करना चाहते थे कि काशी में मृत्यु होने पर स्वर्ग तथा काशी के बाहर मरने पर नर्क की प्राप्ति होती है -साहित्यिक परिचय -  कबीर भक्ति काल की निर्गुण उपासक धारा की ज्ञान मार्गी शाखा के प्रतिनिधि कवि हैं संत कवि कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे कबीर ने पर्यटन और सत्संग से ज्ञान प्राप्त किया था इसी कारण उनकी भाषा में अनेक प्रांतीय भाषाओं के शब्द है उनकी भाषा को पंचमेल खिचड़ी तथा सद्दू कड़ी कहा जाता है कबीर की सहेली उपदेश आत्मक हैं और उनमें व्यंग्य तथा प्रतीक का पुत्र उनको महक बनाता है उनकी कविता का प्रभाव पाठक के मन पर सीधा और गहरा होता है कबीर जो कुछ कहते हैं उसे पूरे विश्व

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