आखिरी चट्टान - मोहन राकेश

                    आखिरी चट्टान | ( मोहन राकेश )   परिचय - मोहन राकेश ( असली नाम मदनमोहन मुगलानी ) का जन्म अमृतसर में सन् 1925 में हुआ । उन्होंने पहले आरिएंटल कालेज , लाहौर से संस्कृत में एम . ए . किया और विभाजन के बाद जालन्धर आये । फिर पंजाब विश्वविद्यालय से एम . ए . किया । जीविकोपार्जन के लिए कुछ वर्षों अध्यापन कार्य किया , किन्तु लाहौर , मुम्बई , जालन्धर और दिल्ली में रहते हुए कहीं भी स्थायी रूप से नहीं रहे । इन्होंने कुछ समय तक ‘ सारिका ' पत्रिका का सम्पादन किया । ये ' नयी कहानी ' आन्दोलन के अग्रणी कथाकार माने जाते हैं । मोहन राकेश बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । उन्होंने उपन्यास , नाटक , कहानी , निबन्ध एवं यात्रा - वृत्तान्त आदि सभी विधाओं पर लेखनी चलायी । इनका सन् 1972 में असमय निधन हुआ ।  आषाढ़ का सारा दिन ' , ' लहरों के राजहंस ' तथा ' आधे - अधूरे ' इनके चर्चित नाटक हैं , जो रंगमंच की दृष्टि से पूर्ण सफल हैं । ' अंधेरे बन्द कमरे ' , ' अन्तराल ' , ‘ न आने वाला कल ' उनके उपन्यास तथा ' इंसान के खण्डहर ' , ' नये बादल '

यात्रा और भ्रमण (गोविंद लाल)

              कुछ ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण ( यात्रा )



 सन् 1996 में जन्मे बहुमुखी प्रतिभा के धनी सेठ गोविन्ददास हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में एक यशस्वी साहित्यकार के रूप में विख्यात हैं । आपने उपन्यास , नाटके , एकाकी , आत्मकथा , काव्य जीवनी , यात्रा संस्मरण , निबंध आदि साहित्य को विविध विधाओं पर लेखनी चलाकर हिन्दी साहित्य के भंडार की पूर्ति ॐ है । आप एक यशस्वी साहित्यकार होने के साथ - साथ स्वतन्त्रता संग्राम के यशस्वी सेनानी भी रहे हैं और इस संग्राम में सक्रिय भाग लेने के कारण आपको अनेक बार जेल - यात्रा भी करनी पड़ी है । जेल में आपको अध्ययन - मनन , चिन्तन एवं लेखन के लिए पर्याप्त अवसर प्राप्त हुआ । इतना ही नहीं भारतीय संस्कृति के अनन्य पुजारी होने के कारण जहाँ एक ओर आपके विचारों में भारतीय संस्कृति की अमिट छाप दिखायी देती है वहीं गाँधीवाद में अटूट श्रद्धा एवं विश्वास होने के कारण आपकी चिन्तन धारा गाँधीजी के विचारों से प्रभावित रही है । | आपको शिक्षा व साहित्य में सन् 1961 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया । आप भारतीय संस्कृति के अनन्य उपासक , कला मर्मज्ञ , आदर्श राजनीतिज्ञ व प्रसिद्ध नाटककार व एकांकीकार थे । आपने अपनी अन्तिम श्वास सन् 1974 में लेकर साहित्य जगत से सदा के लिए नाता तोड़ लिया । आपकी प्रसिद्ध रचनाएँ इस प्रकार हैं हि 6ि ज की गों का संकेत - लिए काला

कर सत्य जगत से सपा के लिए नाता तोड़ लिया । आपकी प्रसिद्ध रचनाएँ इस |  पूछते हैं कि के गोस्वामी है और क्या मन बौरा गया है । यह कभी न और कभी बन जाता है । इए । । र के प्रति नाटक ' प्रकाश ' , ' कर्तव्य ' एवं ' नवरस ' एकांकी - ' सप्तरश्मि ' , ' एकादशी ' , ' पंचभूत ' तथा ' चतुष्पथ ' उपन्यास - ‘ चंपावती ' , ' कृष्णलता ' , ' सोमलता ' आदि । पाठ - सार - प्रस्तुत यात्रावृत्त में लेखक ने चित्तौड़गढ़ की वीर भूमि , मोक्ष प्रदायिनी उज्जैन नगरी के साथ अजन्ता , एलोरा व एलीफेण्टा गुफाओं की यात्रा का वर्णन किया है । भारतीय सांस्कृतिक व ऐतिहासिक धरोहर से सम्बन्धित यात्रावृत्त का सार इस प्रकार है ( 1 ) भाव पूरित चित्तौड़गढ़ की यात्रा - लेखक ने बतलाया है कि मैं | अपने साथियों के साथ लगभग दिन के एक बजे तांगे के द्वारा चित्तौड़गढ़ की यात्रा पर चला । उस समय मेरा हृदय भावनाओं के उद्वेग से उल्लसित हो उठा । इस उल्लास में सहायक बने टॉड का राजस्थान का इतिहास और हिन्दी के दो उपन्यास ‘ राजपूत जीवन संध्या ' और ' वीर जयमल ' जिनको लेखक ने हाल में | ही पढ़ा था और इस वीर भूमि के बारे में जानकारी हासिल की थी कि यही महाराणा सांगा , महाराणा प्रताप , वीर जयमल जैसे अगणित वीरों ने अपनी भारत भूमि की रक्षा के लिए हँसते - हँसते बलिदान दिया था । यहीं भामाशाह जैसे त्यागी महावीर भी हुए थे ।

११1३ । १५ ISN ९ST६ ॥ ॥ १७१ जता जाता । की 4 4 4 4 4 = था लेखक की उत्सुकता चित्तौड़गढ़ को देखने की बढ़ती जाती थी । लेखक ने वहाँ पहुँचकर खण्डहरों के बीच खड़े ‘ कीर्ति - स्तम्भ ' और ' विजय - स्तम्भ ' को देखा जो वीरता के इतिहास के प्रतीक थे । लेखक ने बतलाया है कि यद्यपि यहाँ देखने योग्य बहुत ही कम चीजें थीं लेकिन सात खण्डों वाले विजयस्तम्भ को देखकर बहुत हर्ष हुआ । इसका एक - एक पत्थर भिन्न - भिन्न ध्वनियों में भिन्न - भिन्न रागों द्वारा वीर गाथाएँ गाते जान पड़े । मेरा मन वहाँ की वीर गाथाओं की स्मृतियों में ही खो गया और साथियों के रहने पर मैं वहाँ की शौर्य , त्याग और कष्ट - सहिष्णुता की स्मृतियों को स्मरण करता हुआ चल पड़ा । चित्तौड़गढ़ छोड़ने से पहले लेखक ने उस स्थान को भी देखा जहाँ जयमल ने वीरगति प्राप्त की थी । ( 2 ) उज्जैन की यात्रा - लेखक चित्तौड़गढ़ से उज्जैन की यात्रा के लिए रवाना हुआ । वहाँ लेखक को महाकार कुछ भी देखने को नहीं मिला । जबकि लेखक का इस यात्रा में उद्देश्य तीर्थाटन न होकर ऐतिहासिक वस्तुओं का निरीक्षण करना था । ( 3 ) जलगाँव की यात्रा - उज्जैन से लेखक जलगाँव आया । वहाँ से अजन्ता और एलोरा की गुफाएँ देखने के लिए माहेश्वरी समाज के सुधारक कार्यकर्ता श्री रूपचन्द जी लाठी के द्वारा एक मोटर का प्रबंध किया गया । मोटर द्वारा लेखक साथ | अजंता गया । अजन्ता की गुफाओं की संख्या 29 है जो ईसा के सौ वर्ष पूर्व से सात सौ वर्ष बाद तक में बनी हैं । ये गुफाएँ अपनी अद्भुत चित्रकारी के कारण सारे संसार में प्रसिद्ध हैं । ये गुफाएँ एक अर्द्ध गोलाकार पहाड़ी के मध्य भाग की चट्टानी को काटकर बनायी गयी है । वहाँ कमल पुष्प लिए हुए भगवान बुद्ध का चित्र , बुझ के महाभिनिष्क्रमण का चित्रपके साथ ही महत्त्वपूर्ण चित्र एक राजकीय 7 नदी के अलावा और

वस्तु 1 . | रूपचन्द्र जी लाठी के द्वारा एक माटर का प्रबंध किया गया । माटर द्वारा लेखक अजंता गया । अजन्ता की गुफाओं की संख्या 29 है जो ईसा के सौ वर्ष पूर्व सौ वर्ष बाद तक में बनी हैं । ये गुफाएँ अपनी अद्भुत चित्रकारी के का संसार में प्रसिद्ध हैं । ये गुफाएँ एक अर्द्ध गोलाकार पहाड़ी के मध्य भाग की को काटकर बनायी गयी है । वहाँ कमल पुष्प लिए हुए भगवान बुद्ध का चित्र के महाभिनिष्क्रमण का चित्र है । इसके साथ ही महत्त्वपूर्ण चित्र एक राउ जुलूस का है । अजन्ता की चित्रकला में स्वाभाविकता और सौन्दर्य भावना है । ( 4 ) एलोरा की गुफाएँ - लेखक ने बतलाया है कि अजन्ता की गुरुः देखने के बाद हम मोटर से ही एलोरा की गुफाएँ देखने गये । ये गुफाएँ : शिलाखण्ड को खोदकर बनायी गयी हैं । ये गुफाएँ सवा मील तक लम्बी हैं । गुफा - श्रृंखला के तीन मुख्य अंग हैं — बौद्ध गुफाएँ , हिन्द गुफाएँ और जैन गुफा | । इन गुफाओं में बौद्ध गुफाओं की संख्या 12 , हिन्दू गुफाओं की संख्या 17 और 3 । गुफाओं की संख्या 4 है । ( 5 ) एलीफेण्टा की गुफाएँ - लेखक ने बतलाया है कि यात्रा के दौरान हुन् । बम्बई पहुँचे । यहाँ हम ऐलीफेण्टा गुफाएँ देखने आए थे । ये गुफाएँ एपालो बन्द कोई सात मील पश्चिमोत्तर में एक द्वीप पर स्थित हैं । जिसे स्थानीय निवासी हैं । मल्लाह घरपुरी कहते हैं । इसका घेरा साढ़े चार मील से अधिक नहीं है । इस हैं । का महत्त्व यहाँ की तक्षण कला और यहाँ की अद्भुत गुफाएँ हैं । एलीफेन्टा । गुफाएँ मुख्यत : शैव हैं और इनमें सबसे प्रसिद्ध शिव का मन्दिर है जो एक ” । खोदा गया है ।
। ढ़िता जाता क ने वहाँ में देखा जो खने योग्य बहुत हर्ष द्वारा वीर खो गया स्मृतियों इस स्थान | 263 | लेखक ने बतलाया है कि ऐलीफेण्टा से हम बम्बई लौटे । बम्बई से हमारा विचार बीजापुर जाकर गोल गुम्बज देखने का था लेकिन जबलपुर के कुछ ऐसे तार और पत्र मिले कि इस यात्रा को अब मुझे समाप्त करना पड़ा । लेकिन यह यात्रा रोचक और महत्त्वपूर्ण रही लेकिन गोल गुम्बज देखने का मौका फिर प्राप्त न हो । सका । । | कठिन - शब्दार्थ - हुतात्मा = शहीद । उद्वेग = आकुलता । अद्वितीय = जिसके समान दूसरा न हो । आतुरता = व्याकुलता । बुर्ज = गुम्बद । यज्ञोपवीत = जनेऊ । जमींदोज = विनष्ट । पुरी = नगरी । लिप्सा = इच्छा । आलोकित = प्रकाशित । महाभिनिष्क्रमण = गृहत्याग । तक्षणकला = मूर्तिकला । असबाब = सामान । | | परिलक्षित = दिखाई देना । कर्णावतंस = कान के आभूषण । अवयव = अंग । तृप्त | = सन्तुष्ट । अर्वाचीन = नवीन । क्षिप्रा = नदी का नाम । भवों = भौंहें । सूक्ष्म वस्त्र - महीन कपड़ा । कनखियों = तिरछी दृष्टि से । सुखमयी लिप्सा = सुखपूर्ण इच्छा । सँकरा = पतला , कम चौड़ा ।

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