आखिरी चट्टान - मोहन राकेश

                    आखिरी चट्टान | ( मोहन राकेश )   परिचय - मोहन राकेश ( असली नाम मदनमोहन मुगलानी ) का जन्म अमृतसर में सन् 1925 में हुआ । उन्होंने पहले आरिएंटल कालेज , लाहौर से संस्कृत में एम . ए . किया और विभाजन के बाद जालन्धर आये । फिर पंजाब विश्वविद्यालय से एम . ए . किया । जीविकोपार्जन के लिए कुछ वर्षों अध्यापन कार्य किया , किन्तु लाहौर , मुम्बई , जालन्धर और दिल्ली में रहते हुए कहीं भी स्थायी रूप से नहीं रहे । इन्होंने कुछ समय तक ‘ सारिका ' पत्रिका का सम्पादन किया । ये ' नयी कहानी ' आन्दोलन के अग्रणी कथाकार माने जाते हैं । मोहन राकेश बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । उन्होंने उपन्यास , नाटक , कहानी , निबन्ध एवं यात्रा - वृत्तान्त आदि सभी विधाओं पर लेखनी चलायी । इनका सन् 1972 में असमय निधन हुआ ।  आषाढ़ का सारा दिन ' , ' लहरों के राजहंस ' तथा ' आधे - अधूरे ' इनके चर्चित नाटक हैं , जो रंगमंच की दृष्टि से पूर्ण सफल हैं । ' अंधेरे बन्द कमरे ' , ' अन्तराल ' , ‘ न आने वाला कल ' उनके उपन्यास तथा ' इंसान के खण्डहर ' , ' नये बादल '

तुलसीदास और उनका जीवन

                   तुलसीदास और उनका जीवन 



महाकवि तुलसीदास का जन्म सन 1497 में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के राजापुर नामक गांव में हुआ आपके पिता का नाम आत्माराम तथा माता का नाम हुलसी देवी का बचपन से ही माता-पिता का देहांत हो जाने के कारण इनका पालन और शिक्षा दीक्षा गुरु नरसिंह दास के द्वारा संपन्न हुई तुलसीदास भक्ति धारा के राम भक्त कवि है आपकी कीर्ति का प्रमुख महाकाव्य रामचरितमानस से इस ग्रंथ में हिंदू धर्म तथा संस्कृति के भव्य दर्शन होते हैं कवि ने इस ग्रंथ द्वारा सगुण निर्गुण ज्ञान भक्ति और वैष्णव भक्ति आदि के बीच समन्वय करके सभी का मार्गदर्शन किया है प्रमुख रचनाएं तुलसीदास के ग्रंथों की संख्या इस प्रकार है रामचरितमानस विनय पत्रिका गीतावली कवितावली दोहावली बरवै रामायण श्री कृष्ण गीतावली जानकी मंगल पार्वती मंगल वैराग्य संदीपनी रामलला और रामाज्ञा प्रश्नावली तुलसी भाषा शैली अलंकार आदि सभी कार्यक्रमों के शिल्पकार है


महाकवि तुलसीदास जी ने अपने जीवन के अंदर कुछ भगवान श्री राम के ऊपर जो भी लिखा या मैं आज जो आपको इस स्टोरी के अंदर बताने जा रहा हूं वह सभी लाइने अयोध्या कांड से संकलित है इसमें राम लक्ष्मण और सीता के अयोध्या से वन गमन के प्रसंग का और सजीव चित्रण हुआ है मुनि में धारण किए राम और लक्ष्मण तथा संघ में चंद्रमुखी वधू सीता को देखकर गांव की नारियां सोचती है कि बिना पैर या बिना जूतों के नंगे पर यह लोग कैसे चल पाएंगे कुछ ग्रामीण नारियां सीता से पूछती है कि यह सांवले रंग वाले कौन लगते हैं उसके पिता ने तीनों से मुस्काती हुई उन्हें संकेत करके सब कुछ समझा कर आगे बढ़ जाती है प्रसंग मैं आपके बीच में रख रहा हूं पुर ते निकसी रघुबीर बधू धरि धीर मग में लग जाए जल की भरी बालकनी जल की सुखी गए मधुरा जय श्री बुझती है चलो अब कहती हो कि लकी आतुरता पिया की अखियां हंसी चारों चली जाए अयोध्या की राज वधू कोमल अंगों वाली मां सीता वन जाने के लिए श्री राम के साथ नगर से बाहर निकली उन्होंने बड़े धीरज के साथ कठोर भूमि पर दो कदम बढ़ाए लेकिन थकान के कारण उनके मस्तक पर पसीने की बूंदें छलक ने लगी उनके मधुर और कोमल और उमरा गए वह रामसिंह पूछने लगी अभी कितना और चलना होगा आप पत्तों की कुटिया कब और कहां बनाएंगे राज दुखों में बने उस बेचारी राजबधू को क्या पता था कि वह क्या होता है भूमि पर नंगे पैर चलने से कितना दुख होता है राम ने जब पत्नी की थकान हो आतुरता से भरी दशा देखी तो उनके सुंदर लाइनों से आंसू टपकने लग गए भगवान श्रीराम सोच रहे होंगे कि वनवास का आदेश तो सिर्फ उनके लिए हुआ था और मां सीता पत्नी व्रत का पालन करने को वैसा कर रही थी


धूप और गर्म भूल पर चलते सीता को प्यास लगी तो लक्ष्मण जल लेने गए सीता बहुत थकी और व्याकुल थी लेकिन उन्होंने फर्स्ट ने करते हुए राम से कहा कि लक्ष्मण जल लेने गए हैं और अभी लड़के ही है अतः जल लाने में देरी भी हो सकती है तब तक वह घड़ी पर छाया में खड़े होकर उनकी प्रतीक्षा कर ले सीता ने कहा कि तब तक वह उनके पसीने को पहुंचकर उनकी आंचल से हवा करेगी और गर्म भूल पर चलने से झुलसे उनके पैरों को स्वस्थ कर देंगी राम ने समझ लिया कि सीता बहुत थक चुकी है और छाया में कुछ घड़ी विश्राम करना चाहती है अतः उन्होंने छाया में बैठकर देर तक अपने कांटे निकाले सीता भी समझ गई कि उन्हें विश्राम देने के लिए ही पति ऐसा कर रहे हैं पति का अपने प्रति ऐसा प्रेम देखकर सीता का शरीर पुलकित हो उठा और उनके नेत्रों में प्रेम के आंसू उमड़ उठे महाकवि तुलसीदास के शब्दों में यह भाव छिपा है कि लड़कों का मन चंचल होता है अतः लक्ष्मण को अंकित होगा या कुछ और देखने में देर भी लग सकती है पत्नी का पति के पति और पति का पत्नी के प्रति असीम प्रेम भाव शब्दों और अनुभवों द्वारा व्यक्त कराया गया है भाषा पर और सशक्त बृज भाषा का प्रयोग किया गया है सवैया छंद का सफल प्रयोग हुआ है

श्री राम वन में वृक्ष की दाल को थामे खड़े हैं उनके कंधे पर धनुष और हाथ में बाढ़ हैं उनकी वह देखती है और आंखें बड़ी बड़ी दिख रही है उनके गालों की शोभा का कोई मोल ही नहीं लगाया जा सकता है तुलसीदास कहते हैं अरे मूर्ख और सुंदरता ओं की चाह छोड़कर श्री राम की इस श्यामल छवि को ह्रदय में धारण कर ले इस पर यदि अपने प्राण भी न्योछावर कर दे तो भी इस सुंदरता का मोल झुकता नहीं होगा इसे अपने प्राणों से भी बढ़कर प्रेम करना आरंभ कर दे श्री राम का यह पसीने की बूंदों से दिल मिला था श्यामल शरीर देखकर ऐसा लगता है मानो तारों से भरी रात सामने साकार हो गई है

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