आखिरी चट्टान - मोहन राकेश

                    आखिरी चट्टान | ( मोहन राकेश )   परिचय - मोहन राकेश ( असली नाम मदनमोहन मुगलानी ) का जन्म अमृतसर में सन् 1925 में हुआ । उन्होंने पहले आरिएंटल कालेज , लाहौर से संस्कृत में एम . ए . किया और विभाजन के बाद जालन्धर आये । फिर पंजाब विश्वविद्यालय से एम . ए . किया । जीविकोपार्जन के लिए कुछ वर्षों अध्यापन कार्य किया , किन्तु लाहौर , मुम्बई , जालन्धर और दिल्ली में रहते हुए कहीं भी स्थायी रूप से नहीं रहे । इन्होंने कुछ समय तक ‘ सारिका ' पत्रिका का सम्पादन किया । ये ' नयी कहानी ' आन्दोलन के अग्रणी कथाकार माने जाते हैं । मोहन राकेश बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । उन्होंने उपन्यास , नाटक , कहानी , निबन्ध एवं यात्रा - वृत्तान्त आदि सभी विधाओं पर लेखनी चलायी । इनका सन् 1972 में असमय निधन हुआ ।  आषाढ़ का सारा दिन ' , ' लहरों के राजहंस ' तथा ' आधे - अधूरे ' इनके चर्चित नाटक हैं , जो रंगमंच की दृष्टि से पूर्ण सफल हैं । ' अंधेरे बन्द कमरे ' , ' अन्तराल ' , ‘ न आने वाला कल ' उनके उपन्यास तथा ' इंसान के खण्डहर ' , ' नये बादल '...

30 अक्टूबर 1990 का दर्द

30 अक्टूबर 1990 || कारसेवकों के बलिदान के 28 वर्ष || आज ही के दिन अयोध्या में मुलायम सिंह यादव की सरकार ने निहत्थे कारसेवकों पर गोलिया चलवाई थी जिसमे अनेक कारसेवक शहीद हो गए थे. आइये अब आप सब को बताते है की उस दिन अयोध्या में हुआ क्या था ??? ३० अक्टूबर १९९० को विश्व हिन्दू परिषद् ने गुम्बद नुमा ईमारत को हटाने के लिए कारसेवा की शुरुआत की. आल इंडिया बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ,कांग्रेस पार्टी,मार्क्सवादी पार्टी और कुछ छद्म धर्मनिरपेक्ष पार्टियों के द्वारा इस कारसेवा को समूचे विश्व में मस्जिद के लिए खतरा बताया गया. जबकि ये सर्वविदित है की अयोध्या "राम लला" की जन्मस्थली है और उस जन्मस्थली को तोड़कर वह एक अवैध मस्जिद नुमा ईमारत का निर्माण किया गया था. परन्तु मुस्लिम वोटो के लालच में तत्कालीन प्रधानमंत्री "विपी सिंह" और उस समय के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री "मुल्ला-यम सिंह" मस्जिद बचाने की दौड़ में शामिल हो गए. लगभग ४० हजार CRPF के जवान और २ लाख ६५ हजार सुरक्षा बलों के भारी भरकम सुरक्षा के बावजूद लगभग १ लाख कारसेवक सुबह के ७ बजे अयोध्या पहुँच गए. कारसेवकों ने सरयू नदी के पुल पर चलना शुरू किया और तभी पुलिस वालो ने उन पर लाठी चार्ज शुरू कर दिया. बावजूद इसके कारसेवक तनिक भी ना डरे और नहीं भागे. दिन के लगभग ११ बजे तक अयोध्या जैसे छोटे से शहर में कारसेवको की संख्या ३ लाख को पार कर गयी. पुलिस के जवानों ने कारसेवको पर हमला करने के बजाय उनका सम्मान शुरु कर दिया. लेकिन पुलिस महानिदेशक नेे ऊपर के आदेश पर पुलिस के जवानों को कारसेवको पर हमला करने के लिए उकसाया और पुलिस ने कारसेवको के ऊपर अश्रु गैस के गोलों से हमला करना शुरू किया. और तभी पुलिस महानिदेशक ने खुद निहत्थे साधुओं पर लाठी चार्ज शुरू कर दिया . ये देख कर कारसेवक भड़क गए और वे सारे बैरिकेडिंग को तोड़कर जन्मस्थान तक पहुंच गए और तभी पुलिस ने बिना किसी सुचना के उन पर गोली चलानी शुरू कर दिया. बावजूद इसके कारसेवक अपने लक्ष्य तक पहुँच चुके थे. और तब पुलिस ने उन पर सीधे गोलिया बरसानी सुरु कर दी. इस गोलीबारी में कम से कम १०० कारसेवक शहीद हो गए और कई लापता हो गए. बाद में कई कारसेवकों की लाशे सरयू नदी में तैरती मिली. उनकी लाशों को बालू के बोरो से बांध दिया गया था ताकि वो तैर कर ऊपर ना आ सके.यजा तक की औरतो और साधुओं तक को नहीं छोड़ा गया. मुलायम सिंह यादव ने एक ऐसा घृणित कार्य किया जो उसे बाबर,औरंगजेब और गजनवी के समक्ष ला कर खड़ा कर दे. हर हिन्दू अपनी अंतिम साँस तक मुल्ला-यम जैसे गद्दार को कभी नहीं माफ़ करेगा जिसने मुस्लिम वोटो के लिए अपने धर्म से गद्दारी की और निहत्थे कारसेवकों की हत्या की ..!! !! उन शहीद कारसेवको को शत-शत नमन !! !! राम लला हम आएंगे मंदिर वही बनायेंगे !! !!जय श्री राम!!

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